Ghanakshari chhand

Shubhra vastra shant roop, nainan men gyamdrishti,
Devi hansvahinee ko, haath jod dhyaiye.
Charan kamal se hain, asan kamal kaa hai,
Bramhee hansvahinee ko, sheesh ye nawaiye
Pustak prateek gyaan, veena sur pahchan,
pranvayu gyan kee, to ab ban jaiye.
tyagen ham dweshbhav, bhoolen sab bairbhaav,
baant baant gyan srishti, swarg sam banaiye..




Ambarish Srivastava's picture

ABOUT THE POET ~
Er. Ambarish Srivastava 'Ambar' is an Indian architectural engineer and Hindi language poet.., Vidha: Indian Sanatani Chhand, Geet, Gazal, Muktak, Haiku, Tanka, etc., Awards, In 2007, Ambarish Srivastava was awarded the national 'Indira Gandhi Priyadarshini Award' for outstanding services, achievements and contributions in the field of architectural engineering by All India National Unity Conference in New Delhi. The Indira Gandhi Priyadarshini Award is presented to men and women from various walks of life for their outstanding services, achievement and contributions in their particular professions. The award intends to spot and recognize the hidden talent in the country. Since he could not attend the award ceremony because he got injured in a road accident at 11 October 2007, he was honored this award at his home through post office Sitapur., Also in 2007, he was honored with the 'Abhiyantran-Shree' (Translation: Rich in engineering) distinction by Bhartiya Manvadhikar Association (Translation: Indian Human-Rights Association) in the field of architectural engineering and 'Saraswati-Ratn', Honor (Translation: Gem of Goddess Saraswatee) in 2009 by Hindi Sahitya Parishad (Translation: Hindi Literature Council) in the field of Hindi poetry. He has been actively associated with ACC, Limited and other companies for the welfare of construction workers, and created many Hindi articles on construction techniques and Hindi poems on farmers, construction workers, soldiers, mothers, children, etc., Published Construction related articles, 'Bhawan Nirman (Vastu Shiksha) ' Translation: Building construction (Vastu Education), Social Work, Ambarish Srivastava has honored many elderly persons over 60 years old, and he had organised a Puja for their good health as well as long life. Mohan Verma of the Hindi newspaper Dainik Jagran wrote a special report on Srivastava's service. He is also a Life member of 'Hindi Sabha', Hindi Sahitya Parishad, Sanskar Bharti and Sahitya Utthan Parishad. etc. He is the District President of Sanskaar Bharti and member of the team admin at www.openbooksonline.com, Ambarish Srivastava's published books :, (1) Jo sarhad pe jaye, (2) Desh ko pranam hai, Links:, http://en.wikipedia.org/wiki/Ambarish_Srivastava, http://hi.wikipedia.org/s/thp, http://openbooksonline.com/profile/AmbarishSrivastava, https://www.facebook.com/Ambarish.Srivastava, https://www.facebook.com/pages/Ambarish-Srivastava/126382584042690?ref=ts&fref=ts, https://www.facebook.com/pages/Ambarish-Srivastava/120514774635277?ref=ts&fref=ts, https://www.facebook.com/pages/Ambarish-Srivastava/107381909291012?ref=ts&fref=ts, https://www.facebook.com/Ambarishji?ref=ts&fref=ts, http://hindimekavita.blogspot.com/, ______________________________________________, इं० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर', A.M. A.E.I., A. M. ASCE., Seismic Design courses IIT-Kanpur., जन्म: जून, ३०, १९६५ ग्राम-सरैयां कायस्थान, सीतापुर, भारत., व्यवसाय: आर्कीटेक्चरल इंजीनियर, कवि., माता : श्रीमती मिथलेश श्रीवास्तव, पिता : श्री राम कुमार श्रीवास्तव, प्रकाशित पुस्तकें : (१)'जो सरहद पे जाये', (२) :देश को प्रणाम है, विधा : सनातनी छंद, जापानी छंद, गीत/नवगीत गज़ल आदि, प्रकाशित रचनाएँ: इन्टरनेट पर संयुक्त अरब अमीरात की ई-पत्रिका अनुभूतिहिंदी.ओआरजी, काव्यांचल.कॉम, साहित्यशिल्पी.इन, कविताकोश.ओआरजी और स्वर्ग विभा.टीके आदि वेबसाइटस् तथा "ड्रीम्स इण्डिया", "शिक्षक प्रभा" "मज़मून" आदि पत्रिकाओं में पर अनेक रचनाएँ प्रकाशित, प्राप्त सम्मान: २००९ में हिन्दी कविता के क्षेत्र में हिन्दी साहित्य परिषद सीतापुर द्वारा "सरस्वती-रत्न" सम्मान, २००७ में उत्कृष्ट सेवाओं, विशेष उपलब्धियों और योगदान के लिए राष्ट्रीय अवार्ड “इंदिरा गांधी प्रियदर्शिनी अवार्ड” इसके अतिरिक्त, २००७ में भारतीय मानवाधिकार एसोसिएशन" द्वारा "अभियंत्रण श्री" सम्मान., वर्तमान दायित्व:, (१) अध्यक्ष संस्कार भारती सीतापुर, (२) सदस्य टीम प्रबंधन : www.openbooksonline.com ( साहित्यिक ईमंच), http://openbooksonline.com/page/5170231:Page:148030, संपर्क: 91/९१, सिविल लाइंस सीतापुर, उत्तर प्रदेश, इंडिया. मोबाइल (+919415047020, 8853273066, ) फोन: 05862-244440 ईमेल: ambarishji@gmail.com, कुछ कवितायेँ :, घनाक्षरी, मनहरण घनाक्षरी, (८, ८, ८, ७ वर्ण चरणान्त में गुरु), “सरस्वती वंदना”, शुभ्र वस्त्र शांत रूप, नैनन में ज्ञानदृष्टि, देवी हंसवाहिनी को हाथ जोड़ ध्याइये., चरण कमल से हैं, आसन कमल का है, ब्राह्मी ज्ञान दायिनी को, शीश ये नवाइये., पुस्तक प्रतीक ज्ञान, वीणा सुर पहचान, प्राणवायु ज्ञान की तो अब बन जाइये.., त्यागें द्वेष भाव और भूलें सब बैर-भाव, ज्ञान बाँट-बाँट सृष्टि, स्वर्ग ही बनाइये, 'धन्य धन्य देवी नारी', शक्ति रूप में जो नारी, सिंह की करें सवारी, सृष्टि सारी बलिहारी, भुजबल धारिणी., आगे-आगे चले नारी, पीछे-पीछे जटाधारी, शंख फूंकें चक्रधारी, भय दुःख हारिणी., हाथों में ले के दोधारी, प्रकटी है असुरारी, दुष्टों पर जो है भारी, पाप की संहारिणी., भाव सदा सुविचारी, दूर रहें कुविचारी, धन्य धन्य देवी नारी, वंश कुल तारिणी., 'देश को प्रणाम है', शीश हिमगिरि बना, पांव धोए सिंधु घना, माँ ने सदा वीर जना, देश को प्रणाम है |, ब्रम्हचर्य जहाँ कसे, आर्यावर्त कहें इसे, चार धाम जहाँ बसे, देश को प्रणाम है |, वाणी में है रस भरा, शस्य श्यामला जो धरा, ऋतु रंग हरा-भरा, देश को प्रणाम है |, गंगा-यमुना हैं जहाँ, नर्मदा का नेह वहाँ, पूजें कोटि देव यहाँ, देश को प्रणाम है ||, 'यही देश प्रेम है', दिल से प्रणाम करो, पढ़-लिख नाम करो, हाथ आया काम करो, यही देश प्रेम है, अपना भले को मानो, दुष्ट ही पराया जानो, सबका भला ही ठानो, यही देश प्रेम है |, सदा सद-बुद्धि धरो, बुद्धि से ही युद्ध करो, हवा-पानी शुद्ध करो, यही देश प्रेम है |, जिम्मेदारी ये हमारी, खुश रहें नर-नारी, बचे न कोई बीमारी, यही देश प्रेम है ||, 'यही फरमान है', आर्कीटेक्ट जोरदार, ठेकेदार दमदार, अच्छे रखें किरदार, जिनमें ईमान है |, थोड़ा सा ही अंतर है, लगता है माल वही, अच्छी नई तकनीक, भवन की जान है |, मत घबराएं कभी, बहका कोई न पाए, वाल बांधें नौ-नौ इंची, यही फरमान है |, माल अच्छा ही लगाएं, मजबूत देश बने, भवन भूकंपरोधी, तो ही कल्याण है ||, 'खुद विद्वान है', 'सिन्धु' से ही 'हिन्दू' बना, कहते जिसे हैं जाति, 'हिन्दू' कोई जाति नहीं, धारा सुविचार है |, सच्चे सारे आदि-ग्रन्थ, जिनमें है रामसेतु, सच्चे ही हैं धर्मग्रन्थ, सामने प्रमाण है |, तोड़ो नहीं रामसेतु, इसमें अथाह निधि, कहते हैं साइंटिस्ट, कहता विज्ञान है |, उठा यदि सारा देश, नोच लेगा सारे केश, दिल में रहेगा क्लेश, खुद विद्वान है ||, सांगोपांग घनाक्षरी, 'सिर-माथे गहिये', (८, ८, ८, ७ वर्ण, प्रत्येक चरण का अंतिम शब्द ही अगले चरण, का प्रारंभिक शब्द, जिस शब्द से प्रारंभ उसी से समापन ), कहिये ये घनाक्षरी, रस से जो हरी भरी, सांगोपांग शब्द-शब्द, कहते ही रहिये., रहिये सदा प्रसन्न, घरवाली तन्न भन्न, देती रहे दन्न दन्न, सिर-माथे गहिये., गहिये ये नेह ज्ञान अपना उसे ही जान, सासू जी का है विधान, जो भी कहें सहिये., सहिये उसी की आज, पूरा तभी होगा काज, भूल जाएँ निज लाज, उसकी ही कहिये.., रूप घनाक्षरी, 'दे-दे मारें ईंट-ईंट', (चार चरण प्रति चरण ८, ८, ८, ८ या १६, १६, की यति पर ३२ मात्राएँ अंत गुरु-लघु से), क्रूर सूदखोर होशियार बड़ा आदमी है, सत्य कहा नारियों ने दें सुधार पीट-पीट., देखे जहाँ नारी प्यारी वहीं टपकावे लार, झटका करंट लगे उछले ये फीट-फीट., मसका हमेशा मारे हाँ में हाँ मिलाता रहे, नारी को लुभाता और करता है चीट-चीट, करे जो ये बात पापी कन्या भ्रूण मारने की, पकड़ो व फोड़ो सिर दे-दे मारें ईंट-ईंट.., ______________________________________________________, विष्णुपद छंद, (विष्णुपद छंद: चार चरण प्रति चरण सोलह, दस, मात्राओं पर यति, चरणान्त में गुरु), आते हैं रोटी के सपने, निकले जब घर से., कोस रही है भूख भूख को, क्यों गरीब तरसे?, अधिकारीगण जो दयालु हैं, सो चुप है डर से., सड़ा हुआ भण्डार अन्न का, सजल नयन बरसे.., ___________________________________________, छंद: कुकुभ, 'पर्वत सी होती राई', (प्रति पंक्ति ३० मात्रा, १६, १४ पर यति अंत में दो गुरु), वोट-नीति के चक्कर में जो, चल जाते गहरी चालें., लुटती-पिटती भोली जनता, वह तो उसका मत पा लें., मुट्ठी में अंगार भरा है, सुलग रही है यह भाई., जहाँ हुआ अन्याय जगत में, पर्वत सी होती राई., 'देश हमारा बड़भागी', लहू खौलता आज सभी का, बोल रहा यह अंगारा., अभी समय है सुधरें वरना, फूट चलेगी यह धारा., राम-राज सा एक नियम हो, सब हों प्रभु के अनुरागी., तभी बनेगा सोने जैसा, देश हमारा बड़भागी.., _______________________________________________________________, छंद मदन/रूपमाला, (चार चरण: प्रति चरण २४ मात्रा, १४, १० पर यति चरणान्त में पताका /गुरु-लघु), 'मृगमरीचिका', तप गए थे रेत में हम, प्यास थी भरपूर, स्वच्छ जल सुन्दर जलाशय, तब दिखा कुछ दूर, थे बने प्रतिबिम्ब उलटे, आसमां में मीत, देख जिसको तृप्त आँखें, प्रीति गाये गीत., पग थके चल दूर फिर भी, थे चकित धर माथ, प्यास ज्यों की त्यों हमारी, कुछ न आया हाथ, थे ठगे से रह गए हम, खो गयी थी शक्ति, कामना ही है फँसाती, ज्ञान से ही मुक्ति., चाँदनी का चित्त चंचल, चन्द्रमा चितचोर, मुग्ध नयनों से निहारे, मन मुदित मनमोर., ताकता संसार सारा, देख मन में खोट., पास सावन की घटायें, चल छिपें उस ओट.., था कुपित कुंदन दिवाकर, जल रहा संसार ., विवश वसुधा छेड़ बैठी, राग मेघ-मल्हार., मस्त अम्बर मुग्ध धरती, मीत से मनुहार., घन-घनन घनघोर घुमड़े, तृप्ति दे रसधार.., 'जल है धरोहर', साथियों जल है धरोहर, दे हमें आनंद., व्यर्थ करते जल धरा का, हैं वही मतिमंद., आज पानी बिक रहा है, अब छिड़ी है जंग., अल्प ही भूजल बचा है, हो रहे सब तंग., प्राणदात्री हैं प्रदूषित, गंग, यमुना धार., आँख का पानी मरा है, नहिं चकित संसार., घोलकर अति अल्प चीनी, गैस, ठंडा माल., लूटते पानी पिलाकर, एक फ्लेवर डाल., दीजिए पन्द्रह रुपैया, कटु कसैला स्वाद., नाम मिनरल आज इसका, कंपनी आबाद., हो जमा बरसात का जल, दुःख मिटेंगे आज, चार टी डी एस इसी का, जानिये यह राज., दूर होगी हर समस्या, सोंच लें यदि ठीक., रूफ वाटर हार्वेस्टिंग, आज की तकनीक., तैरती जो मछलियाँ तो, हर जलाशय गेह., कीजिये निर्भय सभी को, हो सभी से स्नेह., ____________________________________________________________, छप्पय, (रोला +उल्लाला), (1), लेकर पूजन-थाल सवेरे बहिना आई., उपजे नेह प्रभाव, बहुत हर्षित हो भाई.., पूजे वह सब देव, तिलक माथे पर सोहे., बाँधे दायें हाथ, शुभद राखी मन मोहे.., हों धागे कच्चे ही भले, बंधन दिल का शेष है.., पुनि सौम्य उतारे आरती, राखी पर्व विशेष है.., (2), अद्भुत अवसर मित्र, आज तो हमने पाया., बहुत भाग्य से आज, दिखी बेटी की माया., दो मुट्ठी ले रेत, भागती आती प्यारी., इसे उठा लें गोद, मिलेंगी खुशियाँ सारी., माता भगिनी का रूप ले, ममता बरसाती सदा., बेटी रत्न अमूल्य है वह, शिशुवत अपनी सम्पदा., _________________________________________________________________, 'दुर्मिल' सवैया, (चार चरण, प्रति चरण आठ सगण), मन मंदिर मध्य महेश बसे मनमोहक रूप दुलारि बनी., पल में पग प्रीति प्रतीति करे कर केलि किलोल बयारि बनी., जग जीत गई मनमीत भई शिवशक्ति घनेरि पुरारि बनी., हिय में ममता जु हिलोर भरे तब नारि पियारि सुखारि बनी.., 'हनुमान व नील जुड़ावति हैं', भरि अंग विहंग अनंग सखा रघुवीर सुधीर सुहावति हैं, निज अंतर से नयना बरसैं सुगरीव के भाग जगावति हैं, लखि नेह छटा अभिराम यहाँ धरणीधर हर्ष जतावति हैं, संग अंगद मीत सुमीत सभी हनुमान व नील जुड़ावति हैं |, सुन्दरी सवैया, 'हिय नेह के भाव जगावति बेटी', (सुन्दरी: चार चरण, प्रति चरण आठ सगण चरणान्त में दीर्घ), निज नैनन से अनमोल लगे हँसि दामिनि दंत दिखावति बेटी |, लखि मंजुल बाल कमाल धमाल सुहावनि सीख सिखावति बेटी |, उर से उपजे अभिराम हँसी हँसि प्रीति प्रतीति लुटावति बेटी |, सखि संग उमंग तरंग लिये हिय नेह के भाव जगावति बेटी |, 'तलिबानहि दें यहि लोक निकाला', अधिकार मिले सब शिक्षित हों बिखरे चहुँ ओर हि ज्ञान उजाला., लड़ती जब जायज़ घायल क्यों सुकुमारि दुलारि पियारि 'मलाला'., सब कष्ट हरौ अरु स्वस्थ करौ करि आज कृपा पुनि दीनदयाला., अति क्रूर व निर्दय ये अधमी तलिबानहि दें यहि लोक निकाला.., मत्तगयन्द सवैया, (सात भगण, चरणान्त में दो दीर्घ), 'सु वंदन सादर हे जगमाता', पावन छंद जु मत्तगयन्द सु वंदन सादर हे जगमाता., बालक मैं मतिमंद तिहार न छंद क ज्ञान मुझे जगमाता., सत्य कहे मन मातु सती यह लोक चले तुमसे जगमाता., मातु करें कछु आज दया सुर भाँतिहिं मानव ऐ जगमाता., 'सुकर्म करे परिवार चलाए', नैमिष धाम बने मन मंदिर मोहक छंद अनूप सुहाए., वंदन मातु तिहार करूं नित भक्ति बढ़े मन आशिष पाए., कालजयी रचना उपजे नित पाठ करे जियरा हरषाए., 'अम्बर' पुत्र तिहार हिं मातु सुकर्म करे परिवार चलाए.., 'मन नैनन प्यास बुझावत वो हैं', मोहनि मूरति मोद भरी अरु चंचल नैन नचावति सोहैं., जीवन संगिनि संग फिरैं हिय प्रेम प्रतीति लुटावति मोहैं ., आयु पचास के पार भई पर तीर-तुणीर चलावति तो हैं., रीझत मोहत प्राणप्रिया मन नैनन प्यास बुझावति वो हैं., 'नेह के भाव जगावति आशा', आस उजास सुहास प्रभास मनोहर रूप दिखावति आशा, भंग तरंग अनंग उमंग सुहावनि मोद मनावति आशा, नीति अनीति सुरीति कुरीति सबै संग प्रीति निभावाति आशा, अंतर द्वन्द हिया में चले फिर नेह के भाव जगावति आशा.., ________________________________________, "बरवै" छंद, (चार चरण : विषम चरण, १२ मात्रा व सम चरण ७ मात्रा), बरवै, जाड़े का मौसम है, आया आज., सी-सी-सी-सी बजता, मुँह से साज.., निर्बल बुढ़िया भक्षे, शीत बिलाव., चौराहे पर जलता, रहे अलाव.., घना कोहरा होते, एक्सीडेंट., पीली लाइट जलती, परमानेंट.., कुहरे में भी छाया, भ्रष्टाचार., कैसे निपटें मिल कर, करें विचार.., त्याग तपस्या सेवा, तेरे नाम., शक्ति स्वरूपा नारी, तुझे प्रणाम.., प्रेम स्नेह की करती, जग में वृष्टि., पूजित नारी होती, जिससे सृष्टि.., पशु-पक्षी तक जानें, देते मान., नयनों की भाषा सब, से आसान.., अंग अधखुले आगे, आदम त्रस्त., कजरारे रतनारे, नयना मस्त.., अंधकार में डूबी, जिसकी सृष्टि, नेत्रदान कर दे दें, उसको दृष्टि.., पंख देखिए इसके, भरे उड़ान., नन्हीं मुन्नी बेटी, अपनी जान.., जिस घर में बेटी से, होता स्नेह., वह होता है सबसे, सुन्दर गेह.., धरती ‘अंबर’ का जब, हो अभिसार., हरियाली दे जग को, नव शृंगार.., मेरा भैया चंदा, जैसा आज., बहना का चलता है, घर में राज.., ___________________________________________________________________, त्रिभंगी, 'हम सब बलिहारी', द्वै बांह पसारति, इत उत धावति, बाल रूप यह, बड़भागी., अंतर मुसकावति, दन्त दिखावति, मधुर नेह जिमि, रस पागी., सागर अति हर्षित, प्रेमहिं वर्षित, परम सुखी अति, जिमि संता., हम सब बलिहारी, राज दुलारी, आज कृपा सब, भगवंता.., __________________________________________________________, मुक्तामणि, (१३, १२ अंत में कर्णा २२ गुरु गुरु), बांह पसारे दौड़ती, मुठ्ठी भर भर चालू ., बिखराती मुस्कान ज्यों, झर-झर झरती बालू.., ___________________________________________________________________, कुंडलिया, (दोहा+रोला ), 'छा रही अपनी हिन्दी', हिन्दी अपनी शान है, हिन्दी ही पहचान., देश हमारा हिन्दवी, प्यारा हिन्दुस्तान., प्यारा हिन्दुस्तान, जहाँ भाषाई मेला., सबको दें सम्मान, करें नहिं कोई खेला., 'अम्बरीष' हो गर्व, भाल भाती यह बिंदी., दुनिया भर में आज, छा रही अपनी हिन्दी.., 'रहे बेटी मुस्काती', मुस्काती नन्ही परी, दिल पर उसका राज., बांह पसारे आ रही, पुलकित सागर आज., पुलकित सागर आज, हृदय ले प्रीति- हिलोरे., आये पीहर छोड़, हाथ कुछ रेत बटोरे., अम्बरीष दें स्नेह, यही खुशियों की थाती., ऐसे हों सत्कर्म, रहे बेटी मुस्काती.., 'उन्हें दिखा दें ठौर', प्यारी इज्जत थी जिन्हें, सत्कर्मों का भोग., अंतर में ईमान था, कहाँ गये वह लोग., कहाँ गये वह लोग, उन्हें खोजें ले आयें., दे अपना सहयोग. उन्हें संसद पहुंचायें., अम्बरीष कविराय, आज उनकी है बारी., उन्हें दिखा दें ठौर, जिन्हें है दौलत प्यारी.., 'नेता जी हैं एक ही', नेता जी हैं एक ही, उनका ही है नाम., भारत माँ के लाल को, सारे करें सलाम., सारे करें सलाम, सभी जन जो हैं ज्ञानी., करता जो परहेज, उसे जानें अभिमानी., अम्बरीष जो आज. वोट ठगकर ले लेता., उसको त्यागें आज, न कहिये उसको नेता.., 'पकड़ कर मांगें माफी', नैना बरसे नीर बन, दुनिया जो दे दाँव., चलकर नीचे जा रहे, हैं पानी के पाँव., हैं पानी के पाँव, पकड़ कर मांगें माफी., सूख रहे जल स्रोत, सजा इतनी ही काफी., अम्बरीष ले रोक, हृदय को तब हो चैना., दिल का धो दें मैल, बरसते जो हैं नैना.., 'अगर पढ़ लेते गीता', गीता का उपदेश दे, किया जगत कल्याण, हे भगवन श्रीकृष्ण अब, हर लो जग का त्राण, हर लो जग का त्राण, यहाँ फ़ैली बीमारी, घात लगाए बाज, बाज भी भ्रष्टाचारी, अम्बरीष तब युद्ध, महाभारत था जीता., भटके पाते राह, अगर पढ़ लेते गीता.., 'खुलेगी अब यह मुट्ठी', मुट्ठी में अंगार है, रणचंडी का वेश., भारत माँ ने जो धरा, सुलगे सारा देश.., सुलगे सारा देश, धुआँ मुठ्ठी से निकले., देख इसे भयभीत, भ्रष्ट सारे हैं दहले., अम्बरीष यह रूप, सुलगती जैसे भट्ठी, भागे भ्रष्टाचार, खुलेगी अब यह मुट्ठी.., 'उन्हें दीजिए दाग', मुट्ठी में जो आग है, वही हृदय में आग., हत्यारे जो भ्रूण के, उन्हें दीजिए दाग., उन्हें दीजिए दाग, सदा अंतर में ऐसा., त्यागें झूठी शान, व्यर्थ इज्जत औ पैसा., अम्बरीष अविराम, चेताएं ले कर लट्ठी., यदि मारा फिर भ्रूण, याद रखना यह मुट्ठी.., 'नित्य निहारे पेय', नींबू अदरक लहसुना, सिरका-सेब जुटाय, सारे रस लें भाग सम, मिश्रित कर खौलाय., मिश्रित कर खौलाय, बचे तीनों चौथाई., तब मधु लें समभाग, मिला कर बने दवाई., 'अम्बरीष' नस खोल, हृदय दे, महके खुशबू., नित्य निहारे पेय, तीन चम्मच भल नींबू.., खातिरदारी देखिये, खूब रचाया खेल., जरदारी के रूप में, हुआ सर्प से मेल ., हुआ सर्प से मेल. करें मिलकर तैयारी., बेच दिया है देश, बेचिये दुनिया सारी., मौसेरे ये भ्रात, हुई क्या रिश्तेदारी., पिला-पिला कर दूध, कीजिये खातिरदारी.., सपने सच होंगे सभी क्योंकर हुए उदास., दिल में बसे सुभाषजी, भगत सिंह हैं पास., भगत सिंह हैं पास, नहीं हम उनको भूले., राजगुरू सुखदेव, सभी फाँसी पर झूले, सुधरेगा यह देश, राह पायेंगे अपने., धीरज से लें काम, साथ देंगे तब सपने., 'अभी नहिं संसद बहरी', बहरी गूंगी है कहाँ, अपनी संसद आज, शुचिता जमा विदेश नहिं, भ्रष्टों का नहिं राज., भ्रष्टों का नहिं राज, दलालों की नहिं चांदी, न्यायशीलता मुक्त, बनी नहिं अब तक बांदी., संविधान नहिं खेल, नहीं हैं चालें गहरी, सड़कों पर क्यों लोग, अभी नहिं संसद बहरी.., 'तभी कायम आजादी', आजादी पूरी यहाँ, आजादी जप नाम, भ्रष्टाचारी राज नहिं, नेक नहीं बदनाम., नेक नहीं बदनाम, नहीं ठहराते दागी., नहिं हो काम तमाम, जिन्हें पाते हैं बागी., कहाँ हुआ वह खेल, अंत जिसका बरबादी, चलें विदेशी राह, तभी कायम आजादी.., 'अगर पढ़ लेते गीता', गीता का उपदेश दे, किया जगत कल्याण, हे भगवन श्रीकृष्ण अब, हर लो जग का त्राण, हर लो जग का त्राण, यहाँ फ़ैली बीमारी, घात लगाए बाज, बाज भी भ्रष्टाचारी, अम्बरीष तब युद्ध, महाभारत था जीता., भटके पाते राह, अगर पढ़ लेते गीता.., 'बदल न पाया वेश', बदला भारत देश है, बदल गया परिवेश, पर किसान को देखिये, बदल न पाया वेश., बदल न पाया वेश, दिखे जैसे का तैसा, सहे भूख की मार, रहा वैसे का वैसा., अम्बरीष यह सत्य, उन्हें भेजा है कहला, सुख-दुख में हम साथ, नहीं अपनापन बदला.., ___________________________________________________________________, चौपाई, नित पग वंदन करैं सुभागी, (चार चरण प्रति चरण १६ मात्रा अंत में गुरु), हरि चरनन जब प्रेम अगाधा| नित दर्शन नहिं कोई बाधा||, बसत राम प्रति पल हिय मोरे| कर्मयोग रम अब दिन थोरे||, आकर्षक अति मोहक रूपा| करैं कामना नर सुर भूपा||, स्वयं वरे अधिकार उसी का| नर असफल मुखमंडल फीका||, सास सबल सुन्दर अभिमानी| ननद रूप भाये शैतानी||, वधू राज गृह की अधिकारी| मनुज दास ही देखि विचारी||, घर-घर में है शासित नारी| नारी अब तक सब पर भारी||, जग़ में जो हैं ज्ञानी त्यागी| नित पग वंदन करैं सुभागी||, ______________________________________________________________, हरिगीतिका, (चार चरण, प्रत्येक में १६, १२ मात्रा पर यति, चरणान्त में लघु गुरु), (१), मधु छंद सुनकर छंद गुनकर, ही हमें कुछ बोध है, सब वर्ण-मात्रा गेयता हित, ही बने यह शोध है, अब छंद कहना है कठिन क्यों, मित्र क्या अवरोध है, रसधार छंदों की बहा दें, यह मेरा अनुरोध है ||, (२), यह आधुनिक परिवेश इसमें, हम सभी पर भार है, यह भार भी भारी नहीं जब, संस्कृति आधार है, सुरभित सुमन सब है खिले अब, आपसे मनुहार है, निज नेह के दीपक जलायें, ज्योंति का त्यौहार है ||, (३), सहना पड़े सुख दुःख कभी मत, भूलिए उस पाप को, यह जिन्दगी है कीमती अब, छोडिये संताप को, अभिमान को भी त्यागिये तब, मापिये निज ताप को, तब तो कसौटी पर कसें हम, आज अपने आप को||, (४), मृदु पीत वसना उर्वरा अब, स्वर्ण पायल पांव में, हो चित्त चंचल मदभरा तन, मन महकता ठांव में., गुरु ज्ञान गंगा में नहा मन, बैठ पीपल छाँव में, भज अन्नदाता प्रभु विधाता, कर्मयोगी गाँव में.., __________________________________________________________________________, पद, मन रे ........ काहें को भाव जगाये., मौसम के खिलते उपवन में, मादक भाव जगाये, बरखा सर्दी, होली चैती, मौसम मन बहलाये, सावन अगहन, कातिक अश्विन, सबमें ताप जगाये, रिमझिम बरसे, नाच मयूरा, मन मधुबन बन जाये, ऋतु वसंत में, कूक कोयलिया, मीठे बोल सुनाये, जुगुनू चमके, तिल्ली, झींगुर, सुन्दर साज बजाये, ऋतु आये ऋतु जाये सबको, भूली राह दिखाये...., मन रे ........ काहें को भाव जगाये., ___________________________________________________________________, ताटंक, (चार चरण, प्रत्येक में १६ और १४ के विराम, से ३० मात्राएँ, चरणान्त में मगण), मेरे प्रियवर मित्र कहाँ थे, वन उपवन सब फूले थे, अनुज हमारे क्योंकर प्यारे, दुनियादारी भूले थे, नारी को सम्मान सभी दें, नारी सब पर भारी है., शक्ति असीमित धरें नारियाँ, झुकती दुनिया सारी है.., ___________________________________________________________________, कह मुकरी, (मुकरी, की परिभाषा मुकरी, का अर्थ मुकरी - मुकरीसंज्ञा स्त्री० [हिं० मुकरना+ई (प्रत्य०)] एक प्रकार की कविता । कह मुकरी । वह कविता जिसमें प्रारंभिक चरणों में कही हुई बात से मुकरकर उसके अंत में भिन्न अभिप्राय व्यक्त किया जाय ।, इसमें चार चरण होते हैं प्रत्येक में अक्सर १६ या १५ मात्रायें पायी जाती हैं ), (1), बड़े प्यार से जो दुलरावै|, हमको अपने गले लगावै|, प्रीति-रीति में हम हों बंदी|, क्यों सखि साजन? नहिं सखि हिंदी!, (2), अलंकार से सज्जित सोहै|, रस की वृष्टि सदा मन मोहै |, मिल जाता है परमानंद |, क्यों सखि साजन? नहिं सखि छंद |, (3), परम संतुलित जिसका भार |, गुरु लघु रूप बना आधार |, जन-जन को है जिसने मोहा|, क्यों सखि साजन? नहिं सखि दोहा!, (4), मेल जोल जिसका है गहना|, जैसे लिखना वैसे पढ़ना|, पूरी होती जिससे आशा, क्यों सखि साजन? नहिं निज भाषा!, (5), दुनिया में जो प्रेम बढ़ावै|, जिसका साथ जिया हर्षावै|, राजनीति में जो है बंदी|, क्यों सखि साजन? नहिं सखि हिंदी!, (6), खुसरो की बेटी कहलाये, भारतेंदु संग रास रचाये, कविजन सारे जिसके प्रहरी, क्या वह कविता? नहिं कह-मुकरी!, (7), बांच जिसे जियरा हरषाये, सोलह मात्रा छंद सुहाये, पुलकित नयना बरसे बदरी, क्या चौपाई ? नहिं कह-मुकरी!, (8), चैन चुराये दिल को भाये, चिर-आनंदित जो कर जाये, मन की कहती फिर भी मुकरी!, क्या वह सजनी? नहिं कह-मुकरी!, (9), हम पर उसका पूरा हक रे, नैनों से कह उससे मुकरे, चलती तिरछी राहें सँकरी, क्या वह सजनी? नहिं कह मुकरी!, (10), दो अर्थी है जिसकी वाणी, मुकरे निज से हँस कल्याणी, जीवन रस की छलके गगरी, क्या वह सजनी ? नहिं कह-मुकरी!, (11), रहे मौन पर साथ निभाये, मैडम का हर हुक्म बजाये, नहीं आत्मा रहता बेमन, ऐ सखि रोबट? नहिं मन मोहन!!, (12), दबे पाँव जो चलकर आवे, हमको अपने गले लगावे, मन भा जावे रूप विहंगम, क्यों सखि सज्जन? ना सखि मौसम !, (13), आये तो छाये हरियाली, उसकी गंध करे मतवाली, मदहोशी का छाये आलम, क्यों सखि सज्जन? ना सखि मौसम !, (14), जिसकी आस में धक् धक् बोले, जिसकी चाह में मनवा डोले, दिल से दिल का होता संगम, क्यों सखि सज्जन? ना सखि मौसम !, (15), जिसकी राह तके ये तन-मन, जिसके आते छलके यौवन, झिमिर-झिमिर झरि आये सरगम, क्यों सखि सज्जन? ना सखि मौसम !, (16), प्रेम वृष्टि हम पर वो करता, दुःख हमारे सब वो हरता, शांत अग्नि हो शीतल मरहम, क्यों सखि सज्जन? ना सखि मौसम !, (17), खग कलरव सुर छंद सुनाती, प्रात खिले विस्मित कर जाती., भोर उगे भा जाए सांची, क्या प्रभु किरणें ? नहिं प्रभु प्राची !, (18), शीतल चित्त करे भरमाये, मोहक रूप हृदय बस जाये, नेह लिए मुसकाए बन्दा, ऐ सखि साजन? नहिं सखि चंदा!!, (19), मन सागर में ज्वार उठाये, रात चाँदनी आग लगाये, नेह प्रीति का डाले फंदा, ऐ सखि साजन? नहिं सखि चंदा!!, (20), प्यार हमारा जब भी पा ले, रात चांदनी डेरा डाले, जालिम हरजाई वह बन्दा, ऐ सखि साजन? नहिं सखि चंदा!!, (21), रोज रोज जियरा तड़पाये, देखे बिना रहा नहिं जाये, वचन न बोले एक सुनंदा, ऐ सखि साजन? नहिं सखि चंदा!!, (22), दिल ये जिसकी चाहे दीद, जिसे देख कर होती ईद, छिपा आज क्यों तम की मांद?, ऐ सखि साजन? नहिं सखि चाँद|, (23), जब भी आती ख्वाब दिखाती, मुकरे निज से फिर भी भाती, उसके बिना न हिलता पत्ता, क्या वह सजनी ? नहिं यह सत्ता!, _______________________________________________________, दोहे, (चार चरण : विषम चरण १३ मात्रा व, जगण निषेध / सम चरण ११ मात्रा), छंदों से लें प्रेरणा, गुरुवर की हो वंदना श्रीचरणों में ध्यान., तब अंतर में आ बसें श्रीहरि कृपानिधान.., संस्कार से बल मिले, जुड़ा रहे परिवार., दुनिया का सच मित्र यह, सबका हो उद्धार.., सरस काव्य की धार हो, सत्संगति सद्ज्ञान., गुरु चरणों में शीश हो, मन मंदिर भगवान.., शक्ति बिराजे संग में शीश गंग की धार., महादेव को है नमन पूजे सब संसार .., महादेव को है नमन उनका जप लें नाम .., सबमें शिव का वास है सृष्टि संतुलन काम.., हो कवित्त से दोस्ती, छंद-छंद से प्यार., रोला दोहा सोरठा, कुण्डलिया अभिसार.., अक्षर अक्षर शब्द ज्यों शब्द शब्द से छंद., राग दोस्ती ज्यों मिले त्यों हों मत्तगयंद.., शब्द सवैया से मिलें, भगण-सगण ले रूप., बहती तब रस धार है, शोभा दिव्या अनूप.., शेर-शेर सब हैं अलग, मतला मकता बोल., मेल मिलाये काफिया, गज़ल बने अनमोल.., सरिता शब्द प्रवाह से, बने गीत-नवगीत., हास्य-व्यंग्य भी साथ में, सबके सब है मीत.., चौपाई हरिगीतिका, छप्पय खेलें खेल., छंदों से लें प्रेरणा, मन से कर लें मेल.., हिंदी जोड़े देश को, हिन्दी में हो काम ., हिंदी छाई विश्व में, हिंद हमारा धाम.., 'दिल से कर लें मेल', एक संग होती रहे पूजा और अजान., सबके दिल में ईश हैं, वह ही सबल सुजान.., निर्गुण ब्रह्म वही यहाँ वही खुदा अल्लाह., वही जगत परमात्मा उनसे सभी प्रवाह.., झगड़े आखिर क्यों हुए क्यों होते ये खेल., मंदिर-मस्जिद मत करो, दिल से कर लो मेल.., पंथ धर्म मज़हब सभी लगें बड़े अनमोल., सबसे ऊपर है वतन मन की आँखें खोल.., बाँट हमें और राज कर हमें नहीं मंजूर., सच ये हमने पा लिया समझे मेरे हुजूर.., बहुतेरी साजिश हुई नहीं गलेगी दाल., एक रहेगा देश ये नहीं चलेगी चाल.., सामयिक दोहे, दंगे होते आज भी, होली हो या ईद., भाईचारा आयगा, हमको है उम्मीद.., कैसे धंधा आज हो, भठ्ठे सारे बंद., ईंटें मँहगी हो गयीं, बनते हैं घर चंद.., जल जीवन-आधार जब, क्योंकर करते व्यर्थ., भूजल होगा खत्म जब, समझेंगें तब अर्थ.., भूजल को मत खर्चिये, जमा रखें सब लोग., आकस्मिक ही काम लें, सीमित हो उपयोग.., जहाँ भूख ही भूख हो, सड़ता वहाँ अनाज., लगी फफूंदी तंत्र में, क्यों गरीब पर गाज.., हाड़तोड़ मेहनत हुई, देख कहाँ बेकार., अन्न सड़ा बँट जायगा, सोती जो सरकार.., जी भर सेवन कीजिये, रहें सदा आबाद., जोरदार सेहत बने, लें मशरूमी स्वाद.., राम भरोसे काम हो, बेहतर और सटीक., भंडारण की सीखिये, यह नवीन तकनीक.., चट्टे क्योंकर हैं सड़े, बेहतर मौन जवाब., लापरवाही में मजा, होगा कहाँ हिसाब.., है अनमोल अनाज पर, बिखरा है चहुँ ओर., पालीथिन काली मगर, काले दिल का जोर.., आरोग्य दोहावली, दही मथें माखन मिले, केसर संग मिलाय., होठों पर लेपित करें, रंग गुलाबी आय.., बहती यदि जो नाक हो, बहुत बुरा हो हाल., यूकेलिप्टिस तेल लें, सूंघें डाल रुमाल.., अजवाइन को पीसिये, गाढ़ा लेप लगाय., चर्म रोग सब दूर हो, तन कंचन बन जाय.., अजवाइन को पीस लें, नीबू संग मिलाय., फोड़ा-फुंसी दूर हों, सभी बला टल जाय.., अजवाइन-गुड़ खाइए, तभी बने कुछ काम., पित्त रोग में लाभ हो, पायेंगे आराम.., ठण्ड लगे जब आपको, सर्दी से बेहाल., नीबू मधु के साथ में, अदरक पियें उबाल.., अदरक का रस लीजिए. मधु लेवें समभाग., नियमित सेवन जब करें, सर्दी जाए भाग.., रोटी मक्के की भली, खा लें यदि भरपूर., बेहतर लीवर आपका, टी० बी० भी हो दूर.., गाजर रस संग आँवला, बीस औ चालिस ग्राम., रक्तचाप हिरदय सही, पायें सब आराम.., शहद आंवला जूस हो, मिश्री सब दस ग्राम., बीस ग्राम घी साथ में, यौवन स्थिर काम.., चिंतित होता क्यों भला, देख बुढ़ापा रोय., चौलाई पालक भली, यौवन स्थिर होय.., लाल टमाटर लीजिए, खीरा सहित सनेह., जूस करेला साथ हो, दूर रहे मधुमेह.., प्रातः संध्या पीजिए, खाली पेट सनेह., जामुन-गुठली पीसिये, नहीं रहे मधुमेह.., सात पत्र लें नीम के, खाली पेट चबाय., दूर करे मधुमेह को, सब कुछ मन को भाय.., सात फूल ले लीजिए, सुन्दर सदाबहार., दूर करे मधुमेह को, जीवन में हो प्यार.., तुलसीदल दस लीजिए, उठकर प्रातःकाल., सेहत सुधरे आपकी, तन-मन मालामाल.., थोड़ा सा गुड़ लीजिए, दूर रहें सब रोग.., अधिक कभी मत खाइए, चाहे मोहनभोग., अजवाइन और हींग लें, लहसुन तेल पकाय., मालिश जोड़ों की करें, दर्द दूर हो जाय.., ऐलोवेरा-आँवला, करे खून में वृद्धि., उदर व्याधियाँ दूर हों, जीवन में हो सिद्धि.., दस्त अगर आने लगें, चिंतित दीखे माथ., दालचीनि का पाउडर, लें पानी के साथ.., मुँह में बदबू हो अगर, दालचीनि मुख डाल., बने सुगन्धित मुख, महक, दूर होय तत्काल.., कंचन काया को कभी, पित्त अगर दे कष्ट., घृतकुमारि संग आँवला, करे उसे भी नष्ट.., बीस मिली रस आँवला, पांच ग्राम मधु संग., सुबह शाम में चाटिये, बढ़े ज्योति सब दंग.., बीस मिली रस आँवला, हल्दी हो एक ग्राम., सर्दी कफ तकलीफ में, फ़ौरन हो आराम.., नीबू बेसन जल शहद, मिश्रित लेप लगाय., चेहरा सुन्दर तब बने, बेहतर यही उपाय.., मधु का सेवन जो करे, सुख पावेगा सोय., कंठ सुरीला साथ में, वाणी मधुरिम होय., पीता थोड़ी छाछ जो, भोजन करके रोज., नहीं जरूरत वैद्य की, चेहरे पर हो ओज.., ठण्ड अगर लग जाय जो नहीं बने कुछ काम., नियमित पी लें गुनगुना, पानी दे आराम.., कफ से पीड़ित हो अगर, खाँसी बहुत सताय., अजवाइन की भाप लें, कफ तब बाहर आय.., अजवाइन लें छाछ संग, मात्रा पाँच गिराम., कीट पेट के नष्ट हों, जल्दी हो आराम.., छाछ हींग सेंधा नमक, दूर करे सब रोग., जीरा उसमें डालकर, पियें सदा यह भोग.., ग्लिसरीन संग पंखुड़ी, पीसें लाल गुलाब., होठ गुलाबी होंयगें, चेहरा हो महताब.., 'कुछ हाइकू', (तीन पंक्तियाँ: प्रत्येक में क्रमशः ५, ७, ५ वर्ण), १., जीवन मर्म, बस यही है धर्म, कर ले कर्म, २., प्यार में धार ., आत्मिक अभिसार, छाये बहार., ३., जुड़ें बेतार, जोड़ ले लगातार, दिलों के तार, ४., मन मुस्काए, किस्मत बन जाए, क्यों घबराए, ५., त्याग दे स्वार्थ, स्वीकार परमार्थ, उठ जा पार्थ, (६), मौत है पास, दिल में मधुमास, वाह रे आस!, (७), निज कल्याण, सर्वांग बेईमान, चाहे ईमान?, (१०), घना कुहरा, कड़कड़ाते दांत, अलाव कहाँ?, (३७), पेट की आग, पालता परिवार, कुआँ मौत का, ___________________________________________________________________, 'तांके', (पाँच पंक्तियाँ: प्रत्येक में क्रमशः ५, ७, ५, ७, ७ वर्ण), 1., धनात्मकता, बँधाये हमें आस, ऋणात्मकता, खो देती है विश्वास, यही है दृष्टि भेद., 2 ., है आवश्यक, पतझड़ दुःख का, बँधाये आस, कराये अहसास, सुखमय पलों का, 2., बाँट ये प्यार, बजा आस सितार, नेह दुलार, शीतल हो बयार, हर्षित हो संसार., 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Last updated January 11, 2013